Saturday, August 15, 2009
अपनी इच्छा को पाने एक लिए
Monday, August 3, 2009
दावत देने घर आती हो
फ़िर खाली थाल दिखाती हो॥
प्रेम की तिरछी नैन चला कर॥
बाद में हमें रूलाती हो॥
हम उलझ जाते है बात में रेरे॥
जब प्रेम का शव्द बताती हो॥
हम दिल को अपने दे देते है॥
क्यो पीछे मुह बिचकाती हो॥
बात बनाने में माहिर हो॥
छत पे हमें बुलाती हो॥
प्रश्न जब कोई पूछ मै लेता ॥
उत्तर देने में झल्लाती हो॥
वादा करना काम तुम्हारा॥
हां मुझसे भरवाती हो॥
कसमे कंदिर में खा करके ॥
अब मुझको क्यो ठुकराती
बीती हुयी जवानी
हमने भी छुपा राखी है ॥
उसकी दी हुयी निशानी॥
हमको भी याद आती है॥
बीती हुयी जवानी॥
सुंदर स्वरूप था॥
सादगी में ढल गई थी॥
उसकी मुस्कराते॥
मेरी नीव बन गई थी॥
होती थी बात जब जब॥
कर जाती थी नादानी॥
.....................
आती थी पास जब जब॥
सरमाता था जमाना॥
हस्ता था दिल हमारा॥
मई प्रेम गीत गाता॥
उसकी सुरमई आँखे॥
बताती थी मेरी कहानी॥
हमको भी याद आती है॥
बीती हुयी जवानी॥
एक दिन जाना पड़े राम जी की नगरी
एक दिन जाना पड़े राम जी की नगरी॥
खली हाथ रैहोबाबा छोट जाए गठरी ॥
एक दिन जाना पड़े राम जी की नगरी॥
धरम कइला ॥ करम कइला॥
पुष्य कइला ॥ पाप कइला ॥
घर्म की किवाड़ा से बंद होए कोठरी ॥
एक दिन जाना पड़े राम जी की नगरी॥
बनाय दिया ॥ बिगाड़ लिया॥
कह दिया ॥ कहवाय liyaa ..
अखिया से धोधुर होए॥
छूट जाए मुदरी...
एक दिन जाना पड़े राम जी की नगरी॥
एक दिन जाना पड़े राम जी की नगरी॥
खली हाथ रैहोबाबा छोट जाए गठरी ॥
एक दिन जाना पड़े राम जी की नगरी॥
धरम कइला ॥ करम कइला॥
पुष्य कइला ॥ पाप कइला ॥
घर्म की किवाड़ा से बंद होए कोठरी ॥
एक दिन जाना पड़े राम जी की नगरी॥
बनाय दिया ॥ बिगाड़ लिया॥
कह दिया ॥ कहवाय liyaa ..
पूजा कइला ॥ पाद कइला
दान कइला ॥ पुष्य कइला
जाते समय छूट जाए॥ माया वाली गठरी॥
एक दिन जाना पड़े राम जी की नगरी॥
दिल्ली की बिल्ली हमने भी देखा
दिल्ली की हमने बिल्ली देखा॥
जो एकदम से काली थी॥
बेईमानी की चुपडी खाती॥
उसकी शान निराली है॥
सच्चाई से नफरत करती ॥
अत्याचारी से करे मिलाप॥
दिन दहाड़े चोरी करवाती॥
सीधी जनता करे विलाप॥
उसकी मीठी बोली में ॥
काली करतूत का छुपा है लेखा॥
दिल्ली की बिल्ली हमने भी देखा॥
हर चौराहे पर खड़े सिपाही॥
फ़िर भी घटना हो जाती है॥
बिन ब्याह की यहाँ कुवारी ॥
कैसे माँ बन जाती है॥
उससे कोई प्रश्न न पूछे॥
न लेता कुकर्म का जोखा॥
दिल्ली की बिल्ली हमने भी देखा॥
Thursday, April 16, 2009
नहि सोभैय’ रँगदारी
राखू याज्ञवल्यक शान,
नहि बिसरु मन्डन अयाची,
वचस्पति विद्यापति केर नाम,
गौरव गाथा सँ पूर्ण धरा पर,
नहि करु एकरा सँग गद्दारी,
नहि सोभैय्य रँगदारी ।
हमर ज्ञान सँस्कृतिक चर्चा,
हई छल जग मे सदिखन,
छल शिक्षा’क केन्द्र बनल,
पहुँचल नहि शिक्षा’क किरण जखन,
आई ठाढ़ि छी निम्न पाँति मे,
नहि करु शिक्षा’क व्यपारी,
नहि सोभैय’ रँगदारी ।
किओ बनल सवर्ण’क पक्षधर,
किओ बनल अवर्णक नेता,
आपस मे सब षडयन्त्र रचि केँ,
एक दोसरा’क सँग लड़ेता,
अहाँ सँ मिथिला तँग भऽ गेल,
छोड़ू आब जातिक ठेकेदारी,
अन्हि सोभैय’ रँगदारी ।
बाढ़िक मरल रौदक झरकल,
जनता के आब कतेक ठकब,
गाम घर पर छोरी पराएल,
आब अहाँ ककरा लुटब,
भलमानुष किछु डटल गाम मे,
नहि फुँकू घर मे चिनगारी,
नहि सोभैय’ रँगदारी ।
Saturday, February 14, 2009
कहाँ गये वो दोस्त, जो हरदम याद किया करते थे
जान - बुझकर न सही, मगर भूले से भी मेल किया करते थे...,
खुशी और गम में हमारा साथ दिया करते थे...,
लगता है सब खो गया है ... प्रोजेक्ट्स की डेड्लाइन्स में...,
न अपनी न हमारी, जाने किसकी यादों में...,
ज़िन्दगी को भुला चुके हैं, नौकरी की आड में...,
हरदम फ़ँसे रहते है, अपने पी.एम. के जाल में...,
कभी आओ मिलो हमसे, बैठकर बाते करो...,
दर्द - ए- दिल अपना कहो, हाले - ए - दिल हमारा सुनो...,
क्या रंजिश, क्या है शिकवा, क्या गिला और क्या खता... ;
हम भी जाने तुम भी जानो, आखिर क्या मंज़र क्या माजरा...,
बस भी करो अब...
कह भी दो, अपने दिल का हाल,
क्या करोगे खामोश रहकर
जो चली गई ये ज़िन्दगी, चला गया ये कारवां...;
जागो प्यारे...! अब बस भी करो,
सिर्फ़ काम नही, थोडा ज़िन्दगी को भी महसूस करो...,
खाओ, पिओ, हँसो, गाओ, झूमों, नाचो, मौज करो...,
हकीकत में ना भले पर कम - से - कम ...
.. भूल से ही सही हमें याद तो करो...
हम तो हरदम देंगे यही दुआ आपको..
याद न भी करो तो क्या, चलो, एन्जॉय ही करो
कल मैने खुदा से पूछा कि खूबसूरती क्या है
तो वो बोले
खूबसूरत है वो लब जिन पर दूसरों के लिए एक दुआ है
खूबसूरत है वो मुस्कान जो दूसरों की खुशी देख कर खिल जाए
खूबसूरत है वो दिल जो किसी के दुख मे शामिल हो जाए और किसी के प्यार के रंग मे रंग जाए
खूबसूरत है वो जज़बात जो दूसरो की भावनाओं को समझे
खूबसूरत है वो एहसास जिस मे प्यार की मिठास हो
खूबसूरत है वो बातें जिनमे शामिल हों दोस्ती और प्यार की किस्से कहानियाँ
खूबसूरत है वो आँखे जिनमे कितने खूबसूरत ख्वाब समा जाएँ
खूबसूरत है वो आसूँ जो किसी के ग़म मे बह जाएँ
खूबसूरत है वो हाथ जो किसी के लिए मुश्किल के वक्त सहारा बन जाए
खूबसूरत है वो कदम जो अमन और शान्ति का रास्ता तय कर जाएँ
खूबसूरत है वो सोच जिस मे पूरी दुनिया की भलाई का ख्याल हो
किसी के इतने पास न जा
के दूर जाना खौफ़ बन जाये
एक कदम पीछे देखने पर
सीधा रास्ता भी खाई नज़र आये
किसी को इतना अपना न बना
कि उसे खोने का डर लगा रहे
इसी डर के बीच एक दिन ऐसा न आये
तु पल पल खुद को ही खोने लगे
किसी के इतने सपने न देख
के काली रात भी रन्गीली लगे
आन्ख खुले तो बर्दाश्त न हो
जब सपना टूट टूट कर बिखरने लगे
किसी को इतना प्यार न कर
के बैठे बैठे आन्ख नम हो जाये
उसे गर मिले एक दर्द
इधर जिन्दगी के दो पल कम हो जाये
किसी के बारे मे इतना न सोच
कि सोच का मतलब ही वो बन जाये
भीड के बीच भी
लगे तन्हाई से जकडे गये
किसी को इतना याद न कर
कि जहा देखो वोही नज़र आये
राह देख देख कर कही ऐसा न हो
जिन्दगी पीछे छूट जाये
Friday, January 30, 2009
उदार
पुराने जमाने की बात है। ग्रीस देश के स्पार्टा राज्य में पिडार्टस नाम का एक नौजवान रहता था। वह पढ़-लिखकर बड़ा विद्वान बन गया था।
एक बार उसे पता चला कि राज्य में तीन सौ जगहें खाली हैं। वह नौकरी की तलाश में था ही, इसलिए उसने तुरन्त अर्जी भेज दी।
लेकिन जब नतीजा निकला तो मालूम पड़ा कि पिडार्टस को नौकरी के लिए नहीं चुना गया था।
दूरदर्शिता
जो मनुष्य केवल काम के प्रारम्भ को देखता है, वह अन्धा है। जो परिणाम को ध्यान में रखे, वह बुद्धिमान है। जो मनुष्य आगे होने वाली बात को पहले ही से सोच लेता है, उसे अन्त में लज्जित नहीं होना पड़ता।
समाधान क्या
एक बूढा व्यक्ति था। उसकी दो बेटियां थीं। उनमें से एक का विवाह एक कुम्हार से हुआ और दूसरी का एक किसान के साथ।
एक बार पिता अपनी दोनों पुत्रियों से मिलने गया। पहली बेटी से हालचाल पूछा तो उसने कहा कि इस बार हमने बहुत परिश्रम किया है और बहुत सामान बनाया है। बस यदि वर्षा न आए तो हमारा कारोबार खूब चलेगा।
बेटी ने पिता से आग्रह किया कि वो भी प्रार्थना करे कि बारिश न हो।
फिर पिता दूसरी बेटी से मिला जिसका पति किसान था। उससे हालचाल पूछा तो उसने कहा कि इस बार बहुत परिश्रम किया है और बहुत फसल उगाई है परन्तु वर्षा नहीं हुई है। यदि अच्छी बरसात हो जाए तो खूब फसल होगी। उसने पिता से आग्रह किया कि वो प्रार्थना करे कि खूब बारिश हो।
एक बेटी का आग्रह था कि पिता वर्षा न होने की प्रार्थना करे और दूसरी का इसके विपरीत कि बरसात न हो। पिता बडी उलझन में पड गया। एक के लिए प्रार्थना करे तो दूसरी का नुक्सान। समाधान क्या हो ?
पिता ने बहुत सोचा और पुनः अपनी पुत्रियों से मिला। उसने बडी बेटी को समझाया कि यदि इस बार वर्षा नहीं हुई तो तुम अपने लाभ का आधा हिस्सा अपनी छोटी बहन को देना। और छोटी बेटी को मिलकर समझाया कि यदि इस बार खूब वर्षा हुई तो तुम अपने लाभ का आधा हिस्सा अपनी बडी बहन को देना।
Thursday, January 29, 2009
Thursday, January 22, 2009
दिल की धड़कन
पर उनके घर में कोई और बसता हे
ज़माने क रीत हे अजीब जो दो फूल खिले साथ साथ
खिलते ही मुकद्दर उनका माली तय करता हे
सीने में मोहब्बत तो पलती हैं
पर ये जो दिल तनहा है वो तड़पता है
दिल पर काबू पाने क कोसिस क बहुत
पर ये खमबख्त धडकना भी तो नहीं छोड़ता
सुराख़
मेरी छत की दीवार पर
दो सुराख़ हैं.
जाने कितनी दफा
भर चुकी हूँ इन्हें,
पर हर बरस,
बरसात में,
उघड ही जाते हैं
और इनसे रीसता पानी
वक़्त-बेवक्त टपक
रुसवा कर जाता है,
सरेआम!
शुक्र है, ये बरसात
बारहों- मास् नहीं रहती!
पर इन दो सुराखों का क्या करुँ?
कैसे भरूँ इन्हें,
के तेरे दर्द की
नुमाइश ना हो?
इस ओर तो
मौसम भी नहीं बदलता!
और बदले भी कहाँ से?
मेरा तो आफताब भी
तू ही था.
तेरे बाद अब
किसके लगाऊं फेरें,
के दिन फिरें...?
'कुछ बदलेगा'
ये उम्मीद भी अब
बुझ चुकी.
बाकी है...तो बस,
यही दुआ
के 'अब के बरस
ये बरसात
मेरी साँसे भी बुझां दे
और ये सुराख
हमेशा हमेशा के लिए
बंद हो जाएँ....!!'
शब्दों को मरते देखा है
शब्दों को मरते देखा है.......
वसंत को झरते देखा है
अपने ह्रदय के एक कोने में,
हमने शब्दों को मरते देखा है।
रफ्तारों को थकते देखा है,
कलमों को रुकते देखा है,
अपनी आंखों के किनारों से
हमने शब्दों को बहते देखा है।
आधारों को ढहते देखा है,
तूफानों को भी, सहते देखा है,
रातों में उठ उठ कर,
हमने शब्दों को टहलते देखा है।
राहों को चलते देखा है,
साँसों को थमते देखा है,
अपनी बर्फीली सोंचों में भी,
हमने शब्दों को जलते देखा है।
भँवरे को कलियाँ, मसलते देखा है,
'करीब' को फासलों में बदलते देखा है,
अपने मन के रेगिस्तानों में भी,
हमने शब्दों को चरते देखा है।
आत्मा को भी मरते देखा है,
इश्वर को भी डरते देखा है,
हाँ! मेरी कोख में भी कभी शब्द हुआ करते थे,
मैंने इक इक करके, सबको मरते देखा है।
वो चाँद चखाने वाली
अबे ओ सुन बे गरीब,
चाँद ताकता है बेफिक्री से,
फुटपाथ पर बैठ कर फिर ,
बीङी सुलगाता है,
बता तो ज़रा,
कितना कमाता है
कि बेफिक्री खरीद लाता है|
बोला वो गरीब,
बेफिक्री पँहुचाने रोज़ ,
चाँद मेरी झोंपङी तक आता है,
रख लेती है एक बर्तन में,
चाँद को फिर मेरी औरत|
चम्मच में भरकर कभी,
थाली में परोसती है चाँद मेरी औरत|
बूढी माँ को दवा की शीशी में,
चांद भर कर देती है मेरी औरत|
बच्चो को खेलने के लिये,
चाँद खिलौना ला देती है मेरी औरत|
छोटे-छोटे टुकङों में चाँद को काटकर,
कितनी ही टाफियाँ बना देती है मेरी औरत|
कभी-कभी बोतल में भरकर,
चाँद को नशीला बना देती है मेरी औरत|
रोज़ मेरे खाली बटुए में,
एक चमकता चाँद रख देती है मेरी औरत|
थकी हुई आँखों में नींद बुलाने को,
दो बूंद चाँद आँख में डाल देती है मेरी औरत |
बूढे हो चले मेरे चेहरे को,
चाँद कह्ती है पगली सी मेरी औरत|
जो पूछा मैने फिर,
है कहाँ,
दिखती नही चाँद चखाने वाली तुम्हारी औरत|
वो हँसा और इशारा कर बोला,
लाल गाङी वाले उस बंगले में,
तवे पर चाँद सेकने गयी है मेरी औरत|
उस बङे घर के बङे और बच्चों को,
थाली में चाँद परोसने गयी है मेरी औरत|
उस घर में बेफिक्री घुटती है,
खुली हवा में दिलाने को साँस,
उसे साथ ले आयेगी मेरी औरत|
मैं कुछ और हू....ये तो नहीं
मैं कुछ और हू....ये तो नहीं
ये तो नहीं
मुझमे हैं
उजाला भी
अँधेरा भी
मैं हु
गलत भी
सही भी
तुम सोचोगे
में भी तुम्हारी तरह
इंसान हू
पर..में कुछ और हू
ये तो नहीं
उस उजाले के
साए में
जो अँधेरा पनपे
उस सही में
तुझको जो गलत
दिखाई दे
उस हर एक गलत्
के साथ हर रोज
वो मैं हू
मैं कुछ और हू
ये तो नहीं.....
मैं कौन हूँ
मैं कौन हूँ !!
फूल बस मुस्कुराते रहे, और उन्हें आता भी क्या है
सागर ने पूछा नदिया से, कौन हो तुम
नदी आकर मिल गई सागर में, और जाती भी कहा पर
मीनार पूछती है नींव के पत्थर से , कौन हो तुम
वो और नीचे को धसक गया , और बेचारा जाता भी कहा पर
सावन पूछता है बादल से , कौन हो तुम
बादल चला गया बरस कर, सावन को नही पता उसे किसने भिगोया
पतंग पूछती हैं मांझे से , क्यो पीछे पड़े हो मेरे
वो तो आसमान में पहुच गई हवा से बात करते करते
मैं पूछ बैठा मुझसे कि मैं कौन हूँ
आइना तोड के में सोने चला गया.
Monday, January 19, 2009
इस जहां में प्यार महके जिन्दगी बाकी रहे
ये दुआ माँगो दिलों में रोशनी बाकी रहे।
दिल के आँगन में उगेगा ख्वाब का सब्जा जरूर
शर्त है आँखों में अपनी कुछ नमी बाकी रहे।
हर किसी से दिल का रिश्ता काश हो कुछ इस तरह
दुश्मनी के साए में भी दोस्ती बाकी रहे।
आदमी पूरा हुआ तो देवता बन जाएगा
ये जरूरी है कि उसमें कुछ कमी बाकी रहे।
लब पे हो नगमा वफा का दिल में ये जज्बा भी हो
लाख हों रुसवाइयां पर आशिकी बाकी रहे।
दिल में मेरे पल रही है ये तमन्ना आज भी
इक समंदर पी चुकूं और तिश्नगी बाकी रहे।
आज रूठा हुआ दोस्त बहुत याद आया
अच्छा गुजरा हुआ वक़्त बहुत याद आया|
मेरे आखों के हर एक अश्क पे रोने वाला दोस्त
आज आँख जब ये रोये तो तुम बहुत याद आये |
जो मेरे दर्द को सिने में छुपा लेता था
आज जब दर्द हुआ मुझको वो बहुत याद आया|
जो मेरे आँख में काजल की तरह रहता था
आज काजल जो लगाया तो बोहोत याद आया |
जो मेरे करीब था दिल के हर वक़्त उसी को
आज जब दिल ने बुलया तो बहुत याद आया|
Zindagi hai choti
har pal mein khush raho...
Office me khush reho,
ghar mein khush raho...
Aaj paneer nahi hai,
dal mein hi khush raho...
Aaj gym jane ka samay nahi,
do kadam chal ke he khush raho...
Aaj Dosto ka sath nahi,
TV dekh ke hi khush raho...
Ghar ja nahi sakte,
to phone kar ke hi khush raho...
Aaj koi naraaz hai,
uske iss andaz mein bhi khush raho..
Jisse dekh nahi sakte,
uski awaz mein hi khush raho...
Jisse paa nahi sakte,
uske yaad mein he khush raho..
MBA karne ka socha tha,
S/W mein he khush raho...
Laptop na mila to kya,
Desktop mein hi khush raho..
bita hua kal ja chuka hai,
uskie meeti yaadon me khush raho..
aane wale pal ka pata nahi..
sapno mein he khush raho..
Haste haste ye pal bitaenge,
aaj mein he khush raho..
Zindagi hai choti ,
har pal Khush raho...
ना ज़मीन, ना सितारे, ना चाँद, ना रात चाहिए
दिल मे मेरे, बसने वाला किसी दोस्त का प्यार चाहिए,
ना दुआ, ना खुदा, ना हाथों मे कोई तलवार चाहिए,
मुसीबत मे किसी एक प्यारे साथी का हाथों मे हाथ चाहिए,
कहूँ ना मै कुछ, समझ जाए वो सब कुछ,
दिल मे उस के, अपने लिए ऐसे जज़्बात चाहिए,
उस दोस्त के चोट लगने पर हम भी दो आँसू बहाने का हक़ रखें,
और हमारे उन आँसुओं को पोंछने वाला उसी का रूमाल चाहिए,
मैं तो तैयार हूँ हर तूफान को तैर कर पार करने के लिए,
बस साहिल पर इन्तज़ार करता हुआ एक सच्चा दिलदार चाहिए,
उलझ सी जाती है ज़िन्दगी की किश्ती दुनिया की बीच मँझदार मे,
इस भँवर से पार उतारने के लिए किसी के नाम की पतवार चाहिए,
अकेले कोई भी सफर काटना मुश्किल हो जाता है,
मुझे भी इस लम्बे रास्ते पर एक अदद हमसफर चाहिए,
यूँ तो 'मित्र' का तमग़ा अपने नाम के साथ लगा कर घूमता हूँ,
पर कोई, जो कहे सच्चे मन से अपना दोस्त, ऐसा एक दोस्त चाहिए
मत करो कोई वादा जिसे तुम निभा न सको
इस छोटी सी जिन्दगी के,गिले-शिकवे मिटाना चाहता हूँ
सब को अपना कह सकूँ,ऐसा ठिकाना चाहता हूँ,
टूटे तारों को जोड़ कर,फिर आजमाना चाहता हूँ,
बिछुड़े जनों से स्नेह का,मंदिर बनाना चाहता हूँ.
हर अन्धेरे घर मे फिर,दीपक जलाना चाहता हूँ,
खुला आकाश मे हो घर मेरा,नही आशियाना चाहता हूँ,
जो कुछ दिया खुदा ने,दूना लौटाना चाहता हूँ,
जब तक रहे ये जिन्दगी,खुशियाँ लुटाना चाहता हूँ
इतने दोस्तो मे भी एक दोस्त की तलाश है मुझे
इतने अपनो मे भी एक अपने की प्यास है मुझे
छोड आता है हर कोइ समन्दर के बीच मुझे
अब डूब रहा हु तो एक सािहल की तलाश है मुझे
लडना चाहता हु इन अन्धेरो के गमो से
बस एक शमा के उजाले की तलाश है मुझे
तग आ चुका हु इस बेवक्त की मौत से मै
अब एक हसीन िजन्द्गी की तलाश है मुझे
दीवना हु मै सब यही कह कर सताते है मुझे
जो मुझे समझ सके उस शख्श की तलाश है मुझे