Thursday, January 22, 2009

शब्दों को मरते देखा है

शब्दों को मरते देखा है.......

दहाडों को डरते देखा है,
वसंत को झरते देखा है
अपने ह्रदय के एक कोने में,
हमने शब्दों को मरते देखा है।

रफ्तारों को थकते देखा है,
कलमों को रुकते देखा है,
अपनी आंखों के किनारों से
हमने शब्दों को बहते देखा है।

आधारों को ढहते देखा है,
तूफानों को भी, सहते देखा है,
रातों में उठ उठ कर,
हमने शब्दों को टहलते देखा है।

राहों को चलते देखा है,
साँसों को थमते देखा है,
अपनी बर्फीली सोंचों में भी,
हमने शब्दों को जलते देखा है।

भँवरे को कलियाँ, मसलते देखा है,
'करीब' को फासलों में बदलते देखा है,
अपने मन के रेगिस्तानों में भी,
हमने शब्दों को चरते देखा है।

आत्मा को भी मरते देखा है,
इश्वर को भी डरते देखा है,
हाँ! मेरी कोख में भी कभी शब्द हुआ करते थे,
मैंने इक इक करके, सबको मरते देखा है।

No comments: