Thursday, April 16, 2009

नहि सोभैय’ रँगदारी

अहाँ विदेहक छी सन्तान,
राखू याज्ञवल्यक शान,
नहि बिसरु मन्डन अयाची,
वचस्पति विद्यापति केर नाम,
गौरव गाथा सँ पूर्ण धरा पर,
नहि करु एकरा सँग गद्दारी,
नहि सोभैय्य रँगदारी ।

हमर ज्ञान सँस्कृतिक चर्चा,
हई छल जग मे सदिखन,
छल शिक्षा’क केन्द्र बनल,
पहुँचल नहि शिक्षा’क किरण जखन,
आई ठाढ़ि छी निम्न पाँति मे,
नहि करु शिक्षा’क व्यपारी,
नहि सोभैय’ रँगदारी ।

किओ बनल सवर्ण’क पक्षधर,
किओ बनल अवर्णक नेता,
आपस मे सब षडयन्त्र रचि केँ,
एक दोसरा’क सँग लड़ेता,
अहाँ सँ मिथिला तँग भऽ गेल,
छोड़ू आब जातिक ठेकेदारी,
अन्हि सोभैय’ रँगदारी ।

बाढ़िक मरल रौदक झरकल,
जनता के आब कतेक ठकब,
गाम घर पर छोरी पराएल,
आब अहाँ ककरा लुटब,
भलमानुष किछु डटल गाम मे,
नहि फुँकू घर मे चिनगारी,
नहि सोभैय’ रँगदारी ।
कवि- दयाकान्त मिश्र